

काशीपुर ( काशीभूमि ब्यूरो) वर्ष 2023 की शुरुआत हुए 50 दिन से अधिक व्यतीत हो गए है। तेजी से बढ़ते दिनों के साथ ही काशीपुर के नेताओं के दिल की धड़कनें भी बढ़नी शुरू हो गई है। खासतौर पर उन नेताओं की जो आगामी निकाय चुनाव में काशीपुर नगर निगम मेयर बनने का सपना संजोय बैठे है। काशीपुर नगर निगम सीट पर आरक्षण की स्थिति क्या होगी इसी को सोच सोच कर कइयों को तो रात में नींद भी नही आ रही है।बाबजूद यह नेता आरक्षण की स्थिति अपने पक्ष में होने की संभावना को सोच कर अभी से टिकट पाने की जुगत में लग गए है। काशीपुर के परिपेक्ष्य में अगर बात करें तो अन्य पार्टियों की अपेक्षा भाजपा में स्थिति बिल्कुल अलग दिखाई पड़ रही है। यहाँ पर पार्टी से मेयर प्रत्याशी बनने का सपना देखने वाले भाजपा नेताओं को भविष्य में होने वाले निकाय चुनाव में टिकट पाने से ज्यादा उस चुनाव में ऊषा चौधरी का टिकट कटवाने के लिये मेहनत करनी पड़ रही है, परन्तु क्या वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष्य में यह सम्भव हो पायेगा कि बड़े जनाधार वाली वर्तमान मेयर ऊषा चौधरी का टिकट कट सके। आइये राजनीति के बीस वर्ष पूर्व चलते है। वर्ष 2003 में काशीपुर नगरपालिका सीट के पिछड़ी जाति ( महिला) हेतु आरक्षित होने पर ऊषा चौधरी को भाजपा नें मैदान में उतारा था, राजनीतिक शास्त्र से एम ए की पढ़ाई करने वाली ऊषा तब इस जोड़ तोड़ की राजनीति से अनजान थी, यही वजह है थी कि “हां और न” के बीच आखिर वह चुनाव लड़ने के लिये राजी हो गई, भाजपा के नेता एकजुट हुए और वह काशीपुर नगर पालिका की अध्यक्ष बनने में कामयाब हुई। वर्ष 2008 में फिर चुनाव का बिगुल बजा, पर समीकरण बदल गए सीट सामान्य वर्ग के लिये आरक्षित हुई तो भाजपा नेता राम मेहरोत्रा के चेयरमैन बनने के सपने जाग गए और उन्होंने ऊषा चौधरी का टिकट कटवा कर खुद की पैरवी की और टिकट पा लिया, परन्तु ऊषा चौधरी नें भी बगावत कर राम की जीत में रोड़ा अटका दिया, और यह चुनाव बसपा की झोली में शमशुद्दीन के रूप में चला गया। हार के बाद राम और ऊषा के बीच गहरी राजनीतिक खाई बन गई। वर्ष 2013 में नगर निगम बनने के बाद पहली बार मेयर का चुनाव हुआ, सीट पिछड़ी जाति महिला के लिये आरक्षित हुई तो राम मेहरोत्रा के सपने पर एक बार फिर कुठाराघात हो गया । राम मेहरोत्रा जो कि पिछले चुनाव में अपनी हार का कारण ऊषा को मानने लगे थे, इस पहले मेयर चुनाव में उनका टिकट कटवाने की जुगत में लग गए आखिर उनको साथ मिला मित्र खिलेंद्र का । और पार्टी से बगावत करने पर आखिर ऊषा का टिकट कट गया और खिलेंद्र चौधरी की पत्नी शिक्षा चौधरी भाजपा उम्मीदवार बनने में कामयाब हुई, ऊषा नें एक बार फिर बगावत की और चुनाव लड़ी। आखिरकार काशीपुर की जनता नें उन्हें एकतरफा जीत दिलाई और उषा काशीपुर की प्रथम मेयर बनी। वर्ष 2018 के चुनाव में मेयर सीट पिछड़ी जाति के लिये आरक्षित हुई एक बार फिर राम मेहरोत्रा के सपनों पर कुठाराघात हुआ । खिलेंद्र चौधरी नें टिकट पाने के प्रयास किये पर विधायक हरभजन सिंह चीमा नें खुलकर ऊषा चौधरी का साथ दिया और ऊषा भाजपा उम्मीदवार तो बनी ही लगातार दूसरी बार मेयर भी बन गई। अब जबकि एक बार फिर वर्तमान वर्ष यानी 2023 में चुनाव होने है। कई भाजपा नेता टिकट पाने की दौड़ में जुट गए है। इनमें प्रमुख नाम राम मेहरोत्रा, खिलेंद्र चौधरी, दीपक बाली, सीमा चौहान, गुरविंदर सिंह चंडोक के है। लेकिन सब भली भांति जानते है कि उनको टिकट तब ही मिल सकता है जब ऊषा चौधरी का टिकट कटे, परन्तु वर्तमान परिदृश्य में यह सम्भव नही दिखाई पड़ता, उषा चौधरी आज काशीपुर की सबसे मजबूत या यूं कहें सर्वाधिक जनाधार वाली नेता के रूप में पहचान रखती है। पार्टी भली भांति जानती है कि उन्हें चुनाव में उतारने से पार्टी की एकजुटता बनी रहेगी। पार्टी पूर्व के चुनावों में उनकी बगावत से हुये पार्टी के नुकसान को भी नही भूलना चाहती। ऐसे में उनका टिकट कटने के दो ही विकल्प है या तो आरक्षण में सीट अनुसूचित जाति के लिये आरक्षित हो जाये या स्वयं वह खुद चुनाव न लड़ें। वह स्वयं चुनाव न लड़ें यह फिलहाल सम्भव नही दिख रहा और न ही दिख रहा उनका टिकट कट पाना।